रविवार, 5 जून 2016

पर्यावरण संरक्षण के लिए जीव रक्षा महत्व समझे हर कोई

पर्यावरण संरक्षण के लिए जीव रक्षा महत्व समझे हर कोई दोस्तो आप पर्यावरण और उसकी महत्व के बारे में तो जानते ही हो हम भी पर्यावरण की एक महत्वपुर्ण कड़ी जो जुड़ी रहेगी तो ही हम लाखों जीव प्रजातियों में अपने आप को बचाये रख सकते है करोड़ों वर्षाे से हमने आपको इतना विकसित किया है कि आज पुरी पृथ्वी पर सबसे बुद्धिमान और शक्तिशाली जीव यानि मनुष्य के रूप में जिवित है। इस धरती पर मात्र हम ही ऐसे जीव है जो दुसरे जीवों में सबसे ज्यादा अनुभवी है, परन्तु हम भी हर जीव की भाँति एक दुसरे पर निर्भर है। आज से हजारों साल पहले हम जंगलों और पहाड़ों के बीच रहते थे, जब हम मांसाहार और फलों पर जिंदा रहते थें जो हमें वन्य जीवों से प्राप्त होता था। हजारों किस्म के कंद मूल और फल हमारी भूख मिटाते थें । पकृति ने हमें हर चीज का उपयोग करना सिखाया तकि हम एक कामयाब प्रजातियों में सबसे आगे निकल सकें और प्रकृति की अनमोल विरासत का उपभोग करने के साथ उसका संरक्षण कर सकें। आप जानते ही है कि वन्य जीव ज्यादातर जंगलों में वास करते है तथा कहीं ना कहीं अपना घर बनाकर रहते है ,उनका घर पेड़ पर हो सकता है या पेड़़ के किसी खोखर में वे आराम से रहते है । इसके अलावा वे पहाड़ो पर बनी गुफाओं में रहते है या पेड़ पर घोंसला बनाकर भी रहते है कुछ जीव जमिंन के नीचे बिल बनाकर रहते है। इस प्रकार लगातार अपने रहने की जदोहद के साथ-साथ वे अपने आपको व अपने अस्तित्व को बचाऐ रखने के लिए भोजन भी प्राप्त करते है जिससे हर कठिन परिस्थितियों में जिंदा रह सकें। इस प्रकार के हजारों लाखों प्रजतियों के जीव है जो संघर्ष कर अपने जीवन को आगे बढ़ाते रहते है। इन्ही जीवों में एक सांप एक ऐसी प्रजााित का जीव है, जो हर रोज अपने जीवन को बचाने के लिए हर माहौल में अपने आप को ढ़ाल लेता है। आपको मालूम हो कि सांप जंगलों व खेतो में रहते है यह जी बड़ा ही शर्मिले स्वभाव का है ज्यादातर सांप दुसरे शिकारी जीवों, पक्षियों, से अपने बचाव के लिए कई तरह के उपाय करते है जैसे जहर को पंप करना,डसना आदि। सांपों को भारत जैसे देश में पूजा जाता है क्योंकि वे प्रकृति के रक्षक के तौर पर देवता के रूप में धरती पर वास करते है उन्हें कुल देवता के रूप में पूजा जाता है। कई जगह देवताओं के रूप में नागों के मंदिर है जहाँ हजारो श्रधालु पूजा अर्चना करने आते है। साँप किसानों के लिए सबसे हितैसी है क्योंकि किसानों की फसले चुहें कुतर-कुतर कर बर्बाद कर देतें है और सांप चुहों को खा जाते है और चुहों की आबादी पर नियंत्रण रखते है। 2011 में मैने अपने खेत में चुहों के बिल को जिज्ञासा वश खोदना शुरू किया तो काफि समय बाद मुझे एक चुहे के बिल में 75 किलोग्राम गेंहु व 9 किलोग्राम कपास के अवशेष गले सड़े रूप में मिले। अब आप अंदाजा लगा सकते है कि एक चुहे के बील में 85 किलोग्राम केवल अवशेष मिले हो तो साल भर में एक चुहा कम से कम 100 किलोग्राम अनाज को चंपत लगा सकता है तो सोचो एक खेत में चुहे के बिल कितने होंगे तथा कितना नुकसान किसान को होता है। इसी कारण सांपों को मनुष्य का मित्र मान कर नाग पंचमी को सांपों की पूजा की जाती है। केरल मेंं तो सभी घरों में सांपों की पूजा की जाती है जहाँ घर में एक स्थान निश्चित होता है। भारत विविधताओं का देश है यहाँ मध्यप्रदेश व उत्तरी पुर्वी सीमा के कु छ आदिवासी कबीले सांपों को भोजन के रूप में उपयोग करते है। यह परम्परा और जरूरत दोनो बन जाने के कारण वहाँ के आदिवासी जंगलों से सांपो को पकड़ कर खा जाते है। कई पुर्वी देश तथा अमेरिका जैसे देश में सांपों का विष व उसका माँस कई प्रकार के रोगों के निवारण में प्रयोग लाया जाता है। कई देशों में सांपों को भोजन के रूप में बड़े चाव से खाया जाता है। बर्मा इसका एक अच्छा उद्धाहरण है यहाँ सांपो को खाया जाता है। इसके अलावा अमेरिका व पश्चिमी देशों में अजगर को भोजन के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। कई प्रमाण मिले है कि पिछले विश्व युद्ध के दौरान सैनिकों को सांपों का सूप पिलाया जाता रहा था। आप शायद जानते हो कि पुरे विश्व में अनुमानन 2500 प्रकार की सांपों की प्रजातियाँ पाई जाती है, जिसमें से अकेले भारत में 500 प्रकार की प्रजाति के सांप पाए जातें है जिसमें से 216 प्रजातियां सांपों की ऐसी है जो विख्यात है जिनको किसी ना किसी रूप में देखा जाता और जो आमतौर पर हर जगह पाई जाती है। आपको जानकर हैरानी होगी की 216 प्रकार के साँपों में से केवल 52 प्रकार के सांप है जो कम या ज्यादा विषैले है और इससे भी ज्यादा हैरानी की बात तो यह है कि उन 52 प्रकार के साँपों में से भी केवल 4 प्रकार के संाप है जो भारत में लोगों को अपने जहर से मार सकते है, जिनका जहर अत्यंत विषैला होता है। बाकि 48 प्रकार के सांप विषैले तो होते है पर वे किसी मनुष्य की जान नही लेते । सांपों को अपना भोजन पचाने के लिए भी विष का सहारा लेना पड़ता है व अपने शिकार के लिए घातक होता है जो जीव उसके भोजन का हिस्सा होते है। इसके अलावा जागरूकता व अज्ञानता वश इतनी बड़ी तादात में सांपों को केवल इसलिए मार दिया जाता है कि सभी सांप जहरीले होते है, परन्तु इन सांपों में कोबरा, करैत, रैटल स्नैक तथा पीट वाइपर के अलावा कोई सांप मनुष्य के लिए खतरनाक नही होता। सांपों के विष का उपयोग विषैले सांपों के विष से कई प्रकार की दवाईयां बनाई जाती है। भारत में होपकिंस संस्थान, मुंबई में सांपों का विष निकाला जाता है और उसके उपयोग के लिए बाजारों में भेजा जाता है। माना जाता है कि एक ग्राम विष की किमत लगभग 5000 रूपऐ तक हो सकती है। जबकि केंद्रीय अनुसंधान संस्थान कसौली में सांप के ही जहर से एंटीवेनम का निर्माण किया जाता है। जो सांप के विष का एक मात्र प्रमाणिक इलाज है। इसके अलावा सांपों के जहर का अनैक दर्द निवारक दवाओं व मांसपेशियों के रोगों में प्रयोग होता है। कोबरा प्रजाति के सांप का जहर नर्वस सिस्टम से जुड़े रोगों के निवारण में प्रयोग लाया जाता है। इसी प्रकार सिर दर्द,कुष्ट रोगों, तथा कुछ विशेष प्रकार के रोग जैसे कैं सर जैसे रोगों के इलाज में भी सांप के विष का उपयोग पाया गया है। सांप के विष से कई प्रकार के इंजाइम भी बनाए जाते है। कोबरा नामक सांप के जहर से न्यूरोटोक्सिन नामक इंजाइम निकाला जाता है। जो स्वांस जैसे रोगों के अनुसंधान व शोध- कार्यों में बहुत उपयोगी है। इसके अतिरिक्त कई प्रकार के जैव रासायनिक शोध-कार्यों हेतू भी सांप के विष से बने इंजाइम का उयोग किया जाता है। होम्योपैथी पद्धति में अनेक रोगों के इलाज में भी सांप के जहर का प्रयोग होता है जैसे मिर्गी,सांइटिका,नवर्स सिस्टम से जुड़े रोगों में भी होम्योपेथी के माध्यम से सांपों के विष का प्रयोग होता है। इसी प्रकार आयुर्वेद में भी सांपो का विष बहुत उपयोगी माना जाता है। इनमें रसैल वाइपर का विष ज्यादा उपयोग लाया जाता है। हजारों सांपो की रक्षा से मिला अनोखा अनुभव मैने स्वयं हजारों साँपों को लोगों के चंगुल से 11 वर्षाे के दौरान बचाया है कभी किसी सांप ने रेस्क्यु के दौरान मुझे व मेंरी टीम के स्दस्यों को कोई नुकसान नही पहुंचाया । हजारों की संख्या में सांपो को पकडऩे और उनको किसी सुरक्षित स्थान पर छोडऩे की जिम्मेंदारी मेंरी टीम की होती है जो शहर में एमरजेंसी रिलिफ टीम नेटवर्क के रूप में काम करती है और सांपों को टीम द्वारा बचाया जाता है। हमारे सामने सैकडों लोग ये बात कबूल करते है कि वास्तव में उन्हें नही पता था कि साँप जहरिले नही भी होते है। परन्तु टीम की मेहनत और जागरूकता अभियान के परिणामों से लोगों पता चल पा रहा है कि सभी सांप जहरिले नही होते है। सांपों के प्रति हमारी गलत धारणाऐं ही आज इस जीव की कई प्रजातियों को संकट ग्रस्त प्रजाति में सुमार कर दिया है। कोबरा जैसे सांप विलुप्त होने की कगार पर है। क्योंकि कोबरा जैसे जीव को सैंकडों वर्षो से सपेरों और दतं कथाओं की अपनी धारणाओं तथा मिथक की भेंट चढऩा पड़ा है। अत्यधिक शिकार और तस्करी की वजह से भी सांपों की कई प्रजातिया नष्ट हो रही है। विदेशो में सांपों के चमड़े, मांस, दवाओं के अतिरिक्त बेल्ट, जुते, हैंडबेग, स्कार्फ, किताबों के कवर, लैंप शेड, कंघों के कवर भी बनाए जाते है जिसकी मांंग के चलते कई तस्कर इन जीवों का ज्यादा शिकार करते है जिस वजह से आज नही तो कल ये जीव पुरी तरह से नष्ट हो जाऐंगें। सुरक्षा ट्रस्ट द्वारा तरह तरह के जागरूकता कार्यक्रमों, और टीमों द्वारा लोगों को इसी लिए जागरूक किया जाता है। ताकि लोग सांपों के बारे फै ले अंधविश्वास के प्रति जागरूक होकर इन जीवों के महत्व को समझ सकें और पर्यावरण में अपना योगदान दे सकें। पर्यावरण संरक्षण व प्राकृतिक संतुलन की अहम कड़ी है वन्य जीव वन्य जीवों का संरक्षण केवल उनकी प्रजातियों का संरक्षण करने के लिए ही नही बल्कि पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने वाली अहम कड़ीयों में से एक है। प्रकृति चक्र की स्थिति को सही बनाऐ रखेंगें तो हर जीव अपने अस्तित्व को बचाऐ रखेगा। वर्ना प्रलय जैसी आपदाओं को दूर से देखना हमारी भूल होगी। मनुष्य होना हमारा सौभाज्य है और हमें इन जीवों की रक्षा व संरक्षण का बिड़ा उठाना होगा तभी हम अपनी रक्षा स्वयं कर सकेंगें। कोबारा के अलावा गौह भी संकटग्रस्त प्रजातियों में से एक है। इसके मांस की भी मांग है परन्तु ज्यादा तर शिकारी तस्करी के लिए इस जीव को मार डालते है। गौह से अनेक तरह की चिजें जैसे हैंडबेग,जुतियां, बेल्ट, मास्क, कवर व नाखुनों की मांग के लिए इस जीव को मारा जाता है। सपैरे और कुछ आदिवासी इस जीव को मांस के लिए ही मार डालते है। कई असामाजिक तत्व लोगों को सांपों की अच्छी किमत मिलने के नाम पर गुमराह करते है। जिस कारण लोग दुमुहा जैसे सांपों को पकडक़र रखते है ताकि कोई व्यापारी आकर खरिदे और उन्हे अच्छी रकम मिले। परन्तु ऐसा नही हो पाता ना ही कोई व्यापारी आता है और ना ही कोई व्यक्ति उन्हें खरिदता है जिस कारण उस जीव को सही वातावरण व प्राकृतिक माहौल ना मिलने की वजह से मौत का ग्रास होना पड़ता है। इसलिए हम लोगों को जागरूक करते है सुरक्षा ट्रस्ट मे माध्यम से की वे गुमराह ना हों और प्रकृति के सम्मान की हर संभव रक्षा करें तो प्रकृति सदा आपकी हर मनोकामना पुरी करती रहेगी। आप सभी से निवेदन है कि किसी भी प्रकार का कोई भी जीव आपको दिखाई दें तो उसको मारें नही और ना ही उसके साथ छेड़-छाड़ करें बल्कि वन्य जीव विभाग से संपर्क करें या सुरक्षा ट्रस्ट की ई.आर.टी.एन. एमरजेंसी रिलिफ टीम नेटवर्क के सदस्यों को सुचित करें। इससे न केवल उस जीव की जान बचेगी बल्कि एक विलुप्त प्राय प्रजाति का अंत होने से आप उसे बचां सकते है साथ ही आपको भी कोई जोखिम नही होगा। भंवर लाल स्वामी संस्थापक - सुरक्षा ट्रस्ट (पर्यावरण संरक्षण व मानव कल्याण को समॢपत ट्रस्ट) प्रकति मेव जयते

शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

आखिर कैसे बचेंगें वन्य जीव:      SURAKSHA TRUST भंवरलाल स्वामी च...

आखिर कैसे बचेंगें वन्य जीव:  
 








  

SURAKSHA TRUST 
भंवरलाल स्वामी
च...
:        SURAKSHA TRUST   भंवरलाल स्वामी चेयरमैन, सुरक्षा ट्रस्ट, जीव-जन्तु कल्याण एवं पर्यावरण को समर्पित चेरिटेबल ट्रस्ट ...
 
 








  

SURAKSHA TRUST 

भंवरलाल स्वामी
चेयरमैन, सुरक्षा ट्रस्ट,
जीव-जन्तु कल्याण एवं पर्यावरण को समर्पित चेरिटेबल ट्रस्ट

 आखिर कैसे बचेंगें वन्य जीव

आज सभी देश विकास की चरम सीमा से पार है। आज विश्व के सभी देश आर्थिक और अन्य सुविधाओं से परिपूर्ण है। आधुनिक तकनीक से सभी देश एक-दूसरे एक करीब है कि मानो पूरी पृथ्वी घर जैसा प्रतीत होती है। परन्तु इन सुखों को प्राप्त करने के लिये मनुष्य ने सदा ही प्रकृति और पर्यावरण से खिलवाड़ किया है। आज संसार में 80 प्रतिशत जंगलों की संख्या घट कर 20 से भी नीचे चली गयी। जिस कारण आज मनुष्य के लिये बहुपयोगी मानी जाने वाली औषधीय वनस्पतियाँ, जड़ी-बुटियां जिनका महत्व हजारों सालों से चला आ रहा है। इसके अलावा प्राकृतिक सम्पदा एवं धरोहर रुपी ऐसे जीव-जन्तुओं जानवरों जिनको देखकर मनुष्य आत्म विभोर होने के साथ-साथ इनका अपने निजी व्यवसाय, मनोरंजन आदि में भी सम्बन्ध रहा है। आज यह विलुप्ति की कगार पर है, जो मनुष्य के स्वार्थों से नष्ट होते जा रहे है। आज इन्हें अपना अस्तित्व बचाये रखने में कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। फिर भी कई जीवों की जहाँ बहुआयात हुआ करती थी। आज वो या तो खत्म हो चुके है या नाममात्र है। जिसका सबसे बड़ा और विशेष कारण है कि मनुष्य का इनके प्रजनन व आवासीय क्षेत्रोंं में घुसपेठ करना, अत्यधिक शिकार, कृषि क्षेत्रों में रासायनों, कीटनाशकों का अन्धाधुन्ध उपयोग और पर्यावरण के बिगडऩे से पैदा हुई परिस्थितियाँ जिम्मेदार है। आज जहाँ कहीं देखो चारों ओर कंक्रीट और लोहे के ऊंचे-ऊंचे जंगलों के अलावा परिवहन संसाधनों की तीव्र ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदूषण भी इसके कारण है।
क वर्तमान में इन अनमोल धरोहरों को बचाने के लिये सरकार और संघटनों के झूठेे वायदों और झांसोंं की अपेक्षा सख्त कानून और आम जन के सहयोग की जरूरत है।
कसभी जीव-जन्तुओं और जानवरों के लिये सभी राज्य और शहरों में संरक्षित क्षेत्रों को आरक्षण देना।
कभूमि अधिग्रहण में जंगलों की कटाई पर रोक लगाना व जंगलों के साथ लगते इलाकों में भवन आदि निर्माण पर सख्ती से रोक लगाना।
क वन्य जीव विभाग व पर्यावरण संरक्षण विभाग द्वारा नये कानून बनना व उन्हें सख्ती से लागू करने के लिये विशेष अभियान व आन्दोलन चलाना चाहिये।
कसभी देश अपने आर्थिक कोटे से इन वन्य जीवों के संरक्षण और रख-रखाव के लिये उपयोग होने वाले रूपये पैसे को सीधा संस्थानों या संघटनों तक पहुँचाना चाहिये। ताकि किसी अन्य घोटाले व लापरवाही न रहे।
क सभी देशों, राज्यों, शहरों, कस्बों और गांवों के हर घर से हर रोज एक रोटी का अनाज व एक रुपया जो हम भिक्षा में ड़ाल देते है, को जीव-जन्तुओं और जानवरो के लिये आरक्षित कर इस क्षेत्र में कार्य कर रहे संघटनों व संस्थानों तक सीधे पहुँचाने चाहिये। इससे लाखों-करोड़ों रूपये और हजारों किवंटल अनाज भूखे जीवों को पहुँच पायेगा।
क सरकार को चाहिये कि जंगलों व जीव अभायरण क्षेत्रों में पानी की विशेष की जाये।
क जंगलों से गुजरने वाली रेलगाडिय़ों की लाइनों के दोनों ओर दीवार या बाढ का विशेष प्रबंध होना चाहिये।
क जिस क्षेत्र में अधिक वन्य जीव हो, उस क्षेत्र को सरकार अधिग्रहण कर संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दें और उस क्षेत्र में आने वाले किसानों के लिये अलग भूमि दिये जाने का प्रबन्ध हो।
क दूरसंचार विभाग की मोबाइल सेवाओं में एक व्यक्ति को एक से अधिक नं० व मोबाइल के प्रयोग प्रतिबंध लगाया जाये क्योंकि मोबाइल से निकलने वाले विकरण पर्यावरण व पूरे आकाशीय मंडल पर खतरनाक प्रभाव छोड़ते है। जिससे सैकड़ों पक्षी प्रजातियों के लिये खतरनाक है।
क टी.वी. चैनलों, रेडियो, अखबारों व विज्ञापनों द्वारा विशेष जागरूकता कार्यक्रम दिखाकर लोगों को जागरूक किया जाना चाहिये, क्योंकि ये माध्यम सर्वाधिक लोकप्रिय व जनजागृति का अनूपम साधन है।
क स्कूलों, कॉलिजों व शिक्षण संस्थानों में पर्यावरण और जीव जगत का विषय अनिवार्य कर दिया जाएं और जीव जन्तु दिवस व पर्यावरण दिवस को सरकार द्वारा भी अन्य राष्ट्रीय त्यौहारों में मान्यता दी जाएं।
वन्य जगत के सभी प्राणियों के बिना मनुष्य अकेला है, इनके बिना प्रेेम, दया, सहानुभूति और स्वयं का विशेष होना मनुष्य के लिये अकेले जानना अत्यधिक कठिन है, क्योंकि ईश्वर ने मनुष्य को पृथ्वी को सबसे अलग, अनोखा, सुन्दर व बुद्धिमान प्राणी बनाया है। जिसका कारण प्रकृति की देखभाल समस्त प्राणियों की रक्षा ही मनुष्य का कर्तव्य है।